दोहा छंद: परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
दोहा छंद क्या है?
- दोहा हिंदी काव्य का एक अत्यंत लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसका प्रयोग नीति, भक्ति और ज्ञान के वचनों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
- यह अर्धसम मात्रिक छंद की श्रेणी में आता है।
दोहा छंद की परिभाषा
“दोहा एक मात्रिक छंद है जिसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों के अंत में **गुरु-लघु (ऽ।)** का प्रयोग होता है।”
दोहा छंद की विशेषताएँ:
मात्रा विन्यास:⇒ 3, 11, 13, 11 (कुल 48 मात्राएँ)
अंत यति:⇒ विषम चरणों में गुरु-लघु (ऽ।)
भाषा:⇒ सरल और प्रभावी
प्रयोग:⇒ नीति, उपदेश, भक्ति भावना
लोकप्रियता:⇒ कबीर, रहीम, तुलसीदास द्वारा प्रयुक्त
दोहा छंद का मात्रा विन्यास
पहला चरण:⇒ 13 मात्राएँ (ऽ। अंत में)
दूसरा चरण:⇒ 11 मात्राएँ (।ऽ अंत में)
तीसरा चरण:⇒ 13 मात्राएँ (ऽ। अंत में)
चौथा चरण:⇒ 11 मात्राएँ (।ऽ अंत में)
कुछ प्रसिद्ध कवियों के दोहे (उदाहरण सहित)
कबीर के दोहे:
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”
रहीम के दोहे:
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।”
तुलसीदास के दोहे:
“करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान।”
विशेषता | दोहा | सोरठा |
---|---|---|
मात्रा विन्यास | 13+11+13+11 | 11+13+11+13 |
अंत यति | विषम चरण: गुरु-लघु | विषम चरण: लघु-गुरु |
प्रयोग | नीति/भक्ति वचन | व्यंग्य/नीति कथन |
दोहा छंद का महत्व
- यह हिंदी साहित्य का सर्वाधिक लोकप्रिय छंद
- यह ज्ञान और नीति का सरल माध्यम है
- यह सहजता से याद होने वाला छंद है
- यह लोक साहित्य में व्यापक प्रयोग किया गया है
- यह प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाला महत्वपूर्ण टॉपिक
निष्कर्ष
- दोहा छंद हिंदी काव्य की एक अनूठी विधा है जो कम शब्दों में गहन अर्थ व्यक्त करती है।
- कबीर, रहीम जैसे संत कवियों ने इस छंद का उपयोग कर जन-जन तक ज्ञान का प्रसार किया।
- आज भी यह छंद अपनी सरलता और प्रभावशीलता के कारण लोकप्रिय है।