17 June 2025
दोहा छंद क्या है

दोहा छंद क्या है? परिभाषा, लक्षण और हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध दोहे उदाहरण सहित

दोहा छंद: परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र

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दोहा छंद क्या है?

  • दोहा हिंदी काव्य का एक अत्यंत लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसका प्रयोग नीति, भक्ति और ज्ञान के वचनों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
  • यह अर्धसम मात्रिक  छंद की श्रेणी में आता है।

दोहा छंद की परिभाषा

“दोहा एक मात्रिक छंद है जिसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों के अंत में **गुरु-लघु (ऽ।)** का प्रयोग होता है।”

दोहा छंद की विशेषताएँ:

मात्रा विन्यास:⇒ 3, 11, 13, 11 (कुल 48 मात्राएँ)

अंत यति:⇒ विषम चरणों में गुरु-लघु (ऽ।)

भाषा:⇒ सरल और प्रभावी

प्रयोग:⇒ नीति, उपदेश, भक्ति भावना

लोकप्रियता:⇒ कबीर, रहीम, तुलसीदास द्वारा प्रयुक्त

दोहा छंद का मात्रा विन्यास

पहला चरण:⇒ 13 मात्राएँ (ऽ। अंत में)

दूसरा चरण:⇒ 11 मात्राएँ (।ऽ अंत में)

तीसरा चरण:⇒ 13 मात्राएँ (ऽ। अंत में)

चौथा चरण:⇒ 11 मात्राएँ (।ऽ अंत में)

कुछ प्रसिद्ध कवियों के दोहे (उदाहरण सहित)

कबीर के दोहे:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”

रहीम के दोहे:

“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।

टूटे से फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।”

तुलसीदास के दोहे:

“करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।

रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान।”

दोहा vs सोरठा छंद

विशेषता दोहा सोरठा
मात्रा विन्यास 13+11+13+11 11+13+11+13
अंत यति विषम चरण: गुरु-लघु विषम चरण: लघु-गुरु
प्रयोग नीति/भक्ति वचन व्यंग्य/नीति कथन

दोहा छंद का महत्व

  • यह हिंदी साहित्य का सर्वाधिक लोकप्रिय छंद
  • यह ज्ञान और नीति का सरल माध्यम है
  • यह सहजता से याद होने वाला छंद है
  • यह लोक साहित्य में व्यापक प्रयोग किया गया है
  • यह प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाला महत्वपूर्ण टॉपिक

निष्कर्ष

  • दोहा छंद हिंदी काव्य की एक अनूठी विधा है जो कम शब्दों में गहन अर्थ व्यक्त करती है।
  • कबीर, रहीम जैसे संत कवियों ने इस छंद का उपयोग कर जन-जन तक ज्ञान का प्रसार किया।
  • आज भी यह छंद अपनी सरलता और प्रभावशीलता के कारण लोकप्रिय है।

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