मात्रिक छंद: परिभाषा, प्रकार और उदाहरण
मात्रिक छंद क्या है?
- मात्रिक छंद हिंदी काव्यशास्त्र का वह छंद है जिसमें मात्राओं की गणना के आधार पर कविता की रचना की जाती है।
- यह वर्णिक छंद से भिन्न होता है, जहाँ वर्णों की संख्या महत्वपूर्ण होती है।
मात्रिक छंद की मुख्य विशेषताएँ
- मात्रा आधारित:⇒ प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं की निश्चित संख्या
- गुरु-लघु नियम:⇒ लघु (1 मात्रा) और गुरु (2 मात्राएँ) का विशेष महत्व
- तुकांत/अतुकांत:⇒ तुक की अनिवार्यता नहीं
- लयबद्धता:⇒ स्वाभाविक प्रवाह और संगीतात्मकता
मात्रिक छंद के प्रमुख प्रकार
- अर्द्ध सममात्रिक छंद
- सम मात्रिक छंद
- विषम मात्रिक छंद
सम मात्रिक छंद
- सभी चरणों में समान मात्राएँ होती है
उदाहरण:
- चौपाई (16-16 मात्राएँ)
विषम मात्रिक छंद
- विभिन्न चरणों में भिन्न मात्राएँ
उदाहरण:
- दोहा (13-11 मात्राएँ)
मात्रिक छंद और उनके उदाहरण
दोहा छंद (13-11मात्राएँ)
“कबीरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर”
सोरठा छंद (11-13 मात्राएँ)
“जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप
जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा तहाँ आप”
चौपाई छंद (16 मात्राएँ)
“रामचरित मानस के, पद संत सुनहिं
तुलसीदास सदा हरि, चरनन लगि रहहिं”
विशेषता | मात्रिक छंद | वर्णिक छंद |
---|---|---|
आधार | मात्राएँ | वर्ण |
गणना | मात्रा संख्या | वर्ण संख्या |
लय | मात्रा भार पर | वर्ण संख्या पर |
उदाहरण | दोहा, सोरठा, चौपाई, रोला | सवैया, कवित्त |
मात्रिक छंद का महत्व
- यह छंद हिंदी काव्य की मूलभूत इकाई है
- यह लोकप्रिय काव्य रूपों का आधार है
- यह भक्ति काल की प्रमुख काव्य शैली है
- यह सरलता और लयबद्धता के कारण सुगम है
निष्कर्ष
- मात्रिक छंद हिंदी काव्य की सबसे सरल और प्रभावी विधा है जिसने सदियों से कवियों को अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का माध्यम दिया है।
- भक्ति काल से लेकर आधुनिक काल तक इस छंद का व्यापक प्रयोग होता आया है।
- छंद विधा सीखने के लिए मात्रिक छंद सर्वोत्तम प्रारंभिक बिंदु है।