रस किसे कहते हैं

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रस

रस का शाब्दिक अर्थ आनंद

रस किसे कहते है

  • काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते है

“शान्त रौद्र अद्भुत करुण हास्य वीर श्रंगार 

महा भयानक जानिए अरु वीभत्स अपार”

काव्य में रसों की संख्या 09 है इस दोहे के रूप में समझा जा सकता है

  • रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है
  • काव्य शास्त्र का प्रथम आचार्य – भरतमुनि
  • रस संप्रदाय के जनक /प्रवर्तक भरतमुनि को माना जाता है
  • भरतमुनि ने रस संप्रदाय का उल्लेख सर्वप्रथम नाट्यशास्त्र ग्रन्थ में किया
  • भरत मुनि ने अपने नाटकशास्त्र में 8 रसों का वर्णन किया
  • अभिनव गुप्त ने नौ रस मानें है
  • 9 वा रस शान्त रस को माना गया है
  • हिन्दी में रस वादी आलोचक आचार्य – राम चन्द्र शुक्ल

रस सूत्र :-

विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पत्ति: 

रस की परिभाषा

  • विभाव अनुभाव संचारी भाव/व्यभिचारी भाव का स्थाई भाव से संयोग होने से रस की निष्पत्ति होती है

रस के भेद

  • भरत मुनि ने अपने नाटकशास्त्र में 8 रसों का वर्णन किया
  • अभिनव गुप्त ने नौ रस मानें है
  • 9 वा रस शान्त रस को माना गया है
  1. श्रंगार रस
  2. वीर रस
  3. शान्त रस
  4. हास्य रस
  5. भयानक रस
  6. रौद्र रस
  7. करुण रस
  8. वीभत्स रस
  9. अद्भुत रस

रस एवं स्थायी भाव

क्रम संख्या

रस

स्थाई भाव

1.श्रंगार रसरति
2.वीर रसउत्साह
3.शान्त रसनिर्वेद
4.हास्य रसहास
5.भयानक रसभय
6.रौद्र रसक्रोध
7.करुण रसशोक
8.वीभत्स रसजुगुत्सा
9.अद्भुत रसविस्मय

 1. श्रंगार रस

  • श्रंगार रस को रस राज भी कहा जाता है
  • प्रेमी और प्रेमिका के मन में स्थित स्थाई भाव रति से उत्पन्न भाव को या आनंद को श्रंगार रस कहते है

श्रंगार रस के भेद

  • श्रंगार रस के दो भेद होते है
  1. संयोग श्रंगार
  2. वियोग श्रंगार

रस के अंग (अवयव )

  1. स्थाई भाव
  2. विभाव
  3. अनुभाव
  4. संचारी भाव/व्यभिचारी भाव

1. स्थाई भाव

  • मुख्य भाव (प्रधान भाव ) को स्थाई भाव कहते है
  • स्थाई भाव को रस का आधार कहते है
स्थाई भाव के भेद
  • स्थाई भावों की संख्या नौ मानी गयी है

2. विभाव

  • स्थाई भाव को जागृत करने वाले कारको को विभाव कहते है
विभाव के भेद
  • विभाव के दो भेद होते है
  1. आलंबन विभाव
  2. उद्दीपन विभाव
आलंबन विभाव
  • जिसका सहारा पाकर स्थाई भाव जागृत होता है, उसे आलंबन विभाव कहते है
उद्दीपन विभाव
  • जागृत हुए स्थाई भाव को और प्रबल (उद्दीपित) करने वाले भाव को उद्दीपन विभाव कहते है

3. अनुभाव

  • मनोगत व्यवहार को व्यक्त करने वाले शारीरिक विकार को अनुभाव कहते है
अनुभाव के भेद
  • अनुभवों की संख्या आठ मानी गयी है

4. संचारी भाव/व्यभिचारी भाव

  • मन में संचरण करने वाले भावो को, संचारी भाव कहते है
  • संचारी भाव की संख्या 33 मानी गयी है 
  1. हर्ष
  2. गर्व
  3. उत्सुकता
  4. चपलता
  5. मद
  6. उन्माद
  7. ब्रीड़ा
  8. अवहित्था
  9. स्वप्न
  10. निद्रा
  11. बिवोध
  12. श्रम
  13. आलस्य
  14. व्याधि
  15. अपस्मार
  16. ग्लानि
  17. जड़ता
  18. मोह
  19. मरण
  20. दैन्य
  21. निर्वेद
  22. शंका
  23. त्रास
  24. आवेग
  25. विषाद
  26. चिन्ता
  27. स्मृति
  28. वितर्क
  29. धृति
  30. मति
  31. अमर्ष
  32. असूया
  33. उग्रता

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