- गयासुद्दीन बलबन: दिल्ली सल्तनत का लौह सुल्तान
बलबन: एक संक्षिप्त परिचय
- गयासुद्दीन बलबन (1200-1287 ई.) दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का नवाँ सुल्तान था।
- वह पहले इल्तुतमिश का गुलाम था, फिर नसीरुद्दीन महमूद का वजीर बना और अंततः 1266 में सुल्तान बना।
- बलबन चालीसा दल का सदस्य था
- इसने चालीसा दल को समाप्त कर दिया
- बलबन ईरान का निवासी था
- इसने ईरानी परम्परा को लागू किया
- इसने नौरोज परम्परा शुरू किया
- सिजदा परम्परा शुरूकिया
- पैबोस(पैर चूमना) परम्परा शुरू किया
- इसने सुल्तान को ईश्वर का प्रतिनिधि बताया
- बलबन को उलूकखान की उपाधि दी गयी
- इसने रक्त और लोह की नीति आरम्भ किया
- उसने ‘लौह एवं रक्त’ की नीति से शासन किया और सुल्तान की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया।
जन्म: | 1200 ई. (इल्बरी तुर्क जनजाति में) |
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मूल नाम: | बहाउद्दीन |
गुलामी से उदय: | इल्तुतमिश ने उसे खरीदा और ‘बलबन’ नाम दिया |
पुत्र | महमूद |
प्रथा | सिजदा और पाबोस |
मृत्यु | 1287 |
बलबन का शासनकाल (1266-1287)
- बलबन ने 12 66ई. में गद्दी पर बैठा
- 1287 ई. में इसकी मृत्यु हो गई
बलबन की प्रमुख चुनौतियाँ:
मंगोल आक्रमण:
- 1279 और 1285 में मंगोलों के आक्रमण का दमन किया
- 1285ई. में मंगोलों से युद्ध में इसके पुत्र महमूद की मृत्यु हो गई
अमीरों का विद्रोह:
- इसने तुर्क अमीरों के विरोध को कुचला
- इसने ‘सिजदा‘ और ‘पाबोस‘ प्रथा लागू कर शाही प्रतिष्ठा बढ़ाई
सिजदा
- शासक के पैर पर माथा टेकना
पाबोस
- शासक के पैर को चूमना
डाकुओं एवं विद्रोहियों का दमन:
- मेवात, कटेहर और दोआब क्षेत्र में कठोर कार्रवाई
- इसने ‘बाजार नियंत्रण व्यवस्था’ लागू किया
बलबन का प्रशासनिक सुधार:
केंद्रीकृत शासन:
- इसने ‘दीवान-ए-अर्ज़’ (सैन्य विभाग) को पुनर्गठित किया
- इसने जासूस नेटवर्क स्थापित किया
सैन्य सुधार:
- इसने सैनिकों की सीधी भर्ती किया
- इसने सीमा क्षेत्रों में किलों का निर्माण करवाया
न्याय व्यवस्था:
- इसने कठोर दंड व्यवस्था लागू किया
- इसने ‘रक्त एवं लौह‘ की नीति अपनाया
निष्कर्ष
- बलबन ने दिल्ली सल्तनत को आंतरिक अशांति और बाहरी आक्रमणों से बचाया।
- उसके कठोर शासन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया, लेकिन उसकी नीतियों ने अमीर वर्ग में असंतोष पैदा किया।
- प्रतियोगी परीक्षाओं में बलबन से संबंधित प्रश्न अक्सर दिल्ली सल्तनत के संदर्भ में पूछे जाते हैं।