देवभूति: शुंग वंश का अंतिम शासक और अमात्य वररुचि की साजिश
देवभूति: परिचय
- देवभूति (83-73 ई.पू.) शुंग वंश का नौवाँ और अंतिम शासक था।
- उसके शासनकाल में शुंग वंश का पतन हुआ और कण्व वंश की स्थापना हुई।
- देवभूति को एक विलासी और अयोग्य शासक माना जाता है जिसके कारण शुंग साम्राज्य समाप्त हो गया।
प्रारंभिक जीवन और सत्ता प्राप्ति
- वंश:⇒ शुंग वंश
- पूर्ववर्ती:⇒ भागभद्र
- सत्ता प्राप्ति:⇒ 83 ई.पू. में
- शासनकाल:⇒ 83-73 ई.पू. (10 वर्ष)
शासनकाल की प्रमुख विशेषताएं
दुर्बल शासन व्यवस्था
- केन्द्रीय शक्ति का ह्रास
- प्रशासनिक अक्षमता
- मंत्रियों का बढ़ता प्रभाव
विलासितापूर्ण जीवन
- अत्यधिक भोग-विलास में डूबे रहना
- राजकाज में उदासीनता
- नर्तकियों और दासियों के प्रति अत्यधिक आसक्ति
सैन्य एवं आर्थिक स्थिति
- सैन्य अनुशासन का पतन
- राजकोष की दुर्दशा
- व्यापार मार्गों की उपेक्षा
देवभूति की हत्या और शुंग वंश का अंत
- वर्ष:⇒ 73 ई.पू.
- हत्यारा:⇒ मंत्री वसुदेव कण्व
- तरीका:⇒ एक नर्तकी के माध्यम से साजिश
- परिणाम:⇒ कण्व वंश की स्थापना
शुंग वंश के पतन के कारण
- अयोग्य उत्तराधिकारी
- प्रशासनिक भ्रष्टाचार
- सैन्य शक्ति का क्षय
- मंत्रियों का बढ़ता प्रभाव
- आर्थिक संकट
ऐतिहासिक स्रोत
- पुराणों में उल्लेख (वायु पुराण, मत्स्य पुराण)
- बाणभट्ट का हर्षचरित
- कल्हण की राजतरंगिणी
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
- शासनकाल:⇒ 83-73 ई.पू.
- राजधानी:⇒ विदिशा
- उत्तराधिकारी:⇒ वसुदेव कण्व (कण्व वंश)
- ऐतिहासिक महत्व:⇒ शुंग वंश का अंत
देवभूति का ऐतिहासिक महत्व
- शुंग वंश के पतन का प्रतीक
- प्राचीन भारत में राजवंश परिवर्तन का उदाहरण
- मंत्रियों के बढ़ते प्रभाव का केस स्टडी
निष्कर्ष
- देवभूति का शासनकाल शुंग वंश के पतन और कण्व वंश के उदय का संक्रमण काल था।
- उसकी हत्या ने न केवल शुंग वंश का अंत किया बल्कि भारतीय इतिहास में एक नए राजवंश की नींव रखी।
- प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर शुंग वंश के पतन के कारणों पर प्रश्न पूछे जाते हैं।