महेंद्रवर्मन प्रथम: पल्लव वंश का महान शासक और कला संरक्षक
वंश | पल्लव वंश |
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पिता | सिंहविष्णु |
राजधानी | कांचीपुरम |
सत्ता प्राप्ति | 600 ई. में |
शासनकाल | 30 वर्ष (600ई.से 630 ई.तक) |
अभिलेख | चालुक्य अभिलेख |
महेंद्रवर्मन प्रथम: परिचय
- महेंद्रवर्मन प्रथम (600-630 ई.) पल्लव वंश का एक महत्वपूर्ण शासक था जिसने कांचीपुरम को अपनी राजधानी बनाकर दक्षिण भारत में एक सशक्त साम्राज्य स्थापित किया।
- वह एक कुशल शासक, कवि और कला संरक्षक था।
शासनकाल की प्रमुख उपलब्धियाँ
- सैन्य अभियान
- धार्मिक परिवर्तन
- कला एवं स्थापत्य
- साहित्यिक योगदान
सैन्य अभियान
- चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के साथ संघर्ष
- वातापी (बादामी) पर आक्रमण
- पांड्य और चोल राज्यों के साथ संबंध स्थापित किए
धार्मिक परिवर्तन
- प्रारंभ में जैन धर्म का अनुयायी
- संत अप्पार के प्रभाव से शैव धर्म अपनाया
- “गुणभर” और “चित्तरक” जैसी उपाधियाँ धारण कीं
कला एवं स्थापत्य
- गुफा मंदिरों का निर्माण
- महेंद्रवादी शैली का प्रवर्तन
- मामंदुर, महेंद्रवादी और दलवनूर के गुफा मंदिर
साहित्यिक योगदान
- संस्कृत नाटक “मत्तविलास प्रहसन” की रचना
- विचित्रचित्त” उपनाम से कविताएँ लिखीं
ऐतिहासिक स्रोत
- महेंद्रवर्मन के ताम्रपत्र
- नारसिंहवर्मन प्रथम के अभिलेख
- चालुक्य अभिलेख
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
- शासनकाल:⇒ 600-630 ई.
- राजधानी:⇒ कांचीपुरम
- प्रमुख युद्ध:⇒ चालुक्यों के विरुद्ध
- विशेष योगदान:⇒ गुफा वास्तुकला का विकास
महेंद्रवर्मन प्रथम का ऐतिहासिक महत्व
- द्रविड़ वास्तुकला के विकास में योगदान
- संस्कृत साहित्य को संरक्षण
- दक्षिण भारत में शैव भक्ति आंदोलन को बढ़ावा
निष्कर्ष
- महेंद्रवर्मन प्रथम ने अपने शासनकाल में पल्लव साम्राज्य को सैन्य, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध किया।
- इसका काल दक्षिण भारतीय कला के इतिहास में स्वर्ण युग माना जाता है।
- प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर उसके सांस्कृतिक योगदान पर प्रश्न पूछे जाते हैं।