वैदिक काल
- वैदिक संस्कृति का निर्माण आर्यों के द्वारा किया गया था
- आर्यों की सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी
- आर्य मुख्यतः पशु पालन करके जीवन यापन करते थे
- आर्यों की भाषा संस्कृत थी
- भारतीय आर्यों का प्राचीनतम वेद ऋग्वेद है
वैदिक संस्कृति की विशेषताएं
- बांस और घास से लोग घरों का निर्माण करते थे
- युद्ध के साक्ष्य मिलते थे
- परिवार पितृ सत्तामक होता था
- संयुक्त परिवार का प्रचाल था
- राजतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था थी
- कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी
- वर्ण व्यवस्था पायी जाती थी
- इन्द्र की पूजा होती थी
- पवित्र पशु गाय को माना जाता था
वैदिक कालीन सभ्यता से सम्बन्धित क्षेत्र
- हस्तिनापुर ⇒ मेरठ के आस-पास का क्षेत्र
- दक्षिणापथ ⇒ विंध्याचल पर्वत के दक्षिणी भाग
- उत्तरापथ ⇒ हिमालय पर्वत का उत्तरी भाग
- सप्तसैन्धव प्रदेश ⇒ जम्मू-कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान का कुछ प्रान्त
- ब्रह्मवर्त ⇒ दिल्ली के आस-पास का क्षेत्र
- ब्रह्मर्षि ⇒ गंगा-यमुना का दोआव क्षेत्र
- आर्यावर्त ⇒ सप्तसैन्धव प्रदेश, ब्रह्मवर्त, ब्रह्मर्षि को सम्मलित रूप को आर्यावर्त कहा गया
आर्यों के बारे में प्रमुख विद्वानों का मत
- मैक्स मूलर के अनुसार “ये लोग मध्य एशिया के निवासी थे“
- दयानन्द सरस्वती के अनुसार “ये लोग तिब्बत के निवासी थे“
- मैक्स मूलर के अनुसार “ये लोग उत्तरी ध्रुब के निवासी थे“
आर्य समाज के भाग
- आर्य समाज पांच भागों में विभक्त था
- राष्ट्र प्रमुख ⇒ राजा
- जन प्रमुख ⇒ जनपति
- विष प्रमुख ⇒ विशपति
- ग्राम प्रमुख ⇒ ग्रामिणी
- कुल प्रमुख ⇒ कुलप
वेद
- वेदों की संख्या चार होती है
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- अथर्ववेद
- सामवेद
उपवेद
- उपवेदों की संख्या निम्न है
- आयुर्वेद
- धनुर्वेद
- शिल्पवेद
- गंधर्ववेद
वेदांग
- वैदिक साहित्य के अध्ययन के लिए वेदांग की रचना हुयी है
वेदांग के प्रकार
- वेदांग की संख्या छ: है
- शिक्षा
- कल्प
- व्याकरण
- निरुक्त
- छन्द
- ज्योतिष
पुराण
- पुराणों की रचना लोमहर्ष एवं उग्रश्रवा द्वारा किया गया था
पुराणों की संख्या
- पुराणों की संख्या 18 है
- मत्स्य पुराण
- विष्णु पुराण
- शिव पुराण
- भगवत पुराण
- अग्नि पुराण
- गरुण पुराण
मत्स्य पुराण
- मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन पुराण मानी गयी है
- इसमें सातवाहन वंश और शुंग वंश के बारे में जानकारी प्राप्त होती है
उपनिषद
- कठ उपनिषद
- केन उपनिषद
- छांदोग्य उपनिषद
- मुण्डक उपनिषद
- ऐतरेय उपनिषद
- माण्डूक्य उपनिषद
- मुण्डक उपनिषद – सत्यमेव जयते
- ऐतरेय उपनिषद – बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग
आरण्यक
- तैत्तिरीय
- मैत्रायणी
- ऐतरेय
- जैमनीय
- वृहदारण्यक
महाकाव्य
- महाभारत
- रामायण
ब्राह्मण ग्रन्थ
- ऐतरेय
- गोपथ
- शतपथ
- पंचविश
- कौषितकी
षड्दर्शन
- संख्य दर्शन
- योग दर्शन
- न्याय दर्शन
- वेदान्त दर्शन
- मीमांसा दर्शन
- वैशेषिक दर्शन
स्मृति
- मनु स्मृति
- नारद स्मृति
- पराशर स्मृति
- याज्ञवल्क्य स्मृति
- वृहस्पति स्मृति
वैदिक काल के भाग
- इस काल को दो भागों में विभाजित किया जाता है
- पूर्व वैदिक काल (ऋग्वैदिक काल)
- उत्तर वैदिक काल
ऋग्वैदिक काल
वर्तमान नाम | प्राचीन नाम |
व्यास | विपाशा |
काबुल | कुम्भा |
चिनाब | अस्किनी |
सतलज | शतुद्री |
गोमती | गोमल |
कुर्रम | क्रभ |
रावी | परुषणी |
घग्घर | दृषद्वती |
गण्डक | सदानीरा |
स्वात | सुवस्तु |
झेलम | वितस्ता |
सिन्धु | सिंध |
ऋग्वैदिक काल की वर्ण व्यवस्थाये
- ऋग्वेद के पुरुष सूक्ति के अनुसार चार वर्ण व्यवस्थाये थी
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- शुद्र
- ये वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी
ऋग्वैदिक काल की विशेषता
- भाषा ⇒ संस्कृत
- समाज पितृसत्तात्मक होता था
- सबसे प्रमुख देवता इन्द्र को माना जाता था
- जौ को यव कहा जाता था
- समुन्द्र को पारावत कहा जाता था
- मरुस्थल को धन्व कहा जाता था
- गाय को अघन्या कहा जाता था अर्थात जिसकी हत्या न किया जा सके
- इस काल 1500 से 1000 ईसा पू तक माना जाता है
- इस काल में सरस्वती नदी को सबसे पवित्र नदी का दर्जा दिया गया है
- ऋग्वेद में सिन्धु नदी का उल्लेख सर्वाधिक बार किया गया है
ऋग्वैदिक काल के प्रमुख देवता
देवता | देवता के कार्य |
इन्द्र | युद्ध का देवता/सबसे प्रमुख देवता |
सूर्य | जीवन का देवता |
अग्नि | यज्ञ का देवता |
मरुत | वायु का देवता /आंधी तूफान का देवता |
वरुण | ऋतुओ का देवता |
आश्विनी | चिकित्सा का देवता |
यम | मृत्यु का देवता |
अरण्यानी | जंगल की देवी |
मित्र | प्रतिज्ञा का देवता |
सोम | वनस्पतियों का देवता |
आर्ष | विवाह का देवता |
पूषण | पशुओ का देवता |
पर्जन्य | वर्षा का देवता |
द्वौ | आकाश का देवता |
विष्णु | सृष्टि का संचालक |
उषा | प्रगति की देवी |
ऋग्वेद
- ऋग्वेद को सबसे प्राचीन वेद कहा जाता था
- ऋग्वेद में 10 मंडल होता था
- गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मण्डल से लिया गया है
- ऋग्वेद का 9वां मण्डल सोम देवता को समर्पित है
- ऋग्वेद में पहला और दसवां मण्डल सबसे बाद में जोड़ा गया था
- सूक्तियों की संख्या ⇒ 1028 सूक्त
- मंत्रों की संख्या ⇒ 10580 मंत्र
- इन्द्र के लिए 250 बार मंत्रों का प्रयोग किया गया है
- अग्नि के लिए 200 बार मंत्रों का प्रयोग किया गया है
- विष्णु के लिए 100 बार मंत्रों का प्रयोग किया गया है
- शिव के लिए 3 बार मंत्रों का प्रयोग किया गया है
- सिन्धु नदी का 55 बार उल्लेख किया गया है
- सरस्वती नदी का 50 बार उल्लेख किया गया है
- यमुना नदी का 3 बार उल्लेख किया गया है
- गंगा नदी का 1 बार उल्लेख किया गया है
उत्तर वैदिक काल
- उत्तर वैदिक काल 1000ई.पू. से 600.ई.पू. तक माना जाता है
- उत्तर वैदिक काल की जानकारी यजुर्वेद, सामवेद और अर्थववेद से प्राप्त होती है
उत्तर वैदिक काल की वर्ण व्यवस्थाये
- उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर होती थी
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- शुद्र
उत्तर वैदिक काल प्रमुख प्रशासक
पुरोहित | राजा का सलाहकार होता था |
युवराज | राजा का उत्तराधिकारी होता था |
संग्रहित | कोषाध्यक्ष |
सेनानी | सेना प्रमुख |
सूत | सारथी कहा जाता था |
ग्रामिणी | ग्राम प्रशासक |
पलागल | दूत को कहा जाता था |
ग्राम्यवादिन | न्यायाधीस को कहा जाता था |
भागदूध | कर एकत्र करने वाला अधिकारी |
जीवग्रिभ | पुलिस प्रशासक |
- उत्तर वैदिक काल की प्रमुख देवता प्रजापति को माना जाता था