चौपाई छंद: परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
चौपाई छंद क्या है?
- चौपाई हिंदी काव्य का एक सम मात्रिक छंद है जिसका प्रयोग मुख्यतः भक्ति काव्य में किया जाता है।
- यह सम मत्रिक छंद की श्रेणी में आता है और अपनी मधुर लय के लिए जाना जाता है।
चौपाई छंद की परिभाषा
“चौपाई सम मात्रिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं और प्रत्येक चरण के अंत में गुरु (ऽ) होता है। यह छंद अत्यंत संगीतमय होता है।”
चौपाई छंद की विशेषताएँ:
मात्रा विन्यास:⇒ 16-16-16-16 (कुल 64 मात्राएँ)
अंत यति:⇒ प्रत्येक चरण के अंत में गुरु (ऽ)
भाषा:⇒ सरल और प्रवाहमय
प्रयोग:⇒ भक्ति काव्य, आख्यान काव्य
प्रसिद्धि:⇒ तुलसीदास के रामचरितमानस में व्यापक प्रयोग
चौपाई छंद का मात्रा विन्यास
पहला चरण:⇒ 16 मात्राएँ (ऽ अंत में)
दूसरा चरण:⇒ 16 मात्राएँ (ऽ अंत में)
तीसरा चरण:⇒ 16 मात्राएँ (ऽ अंत में)
चौथा चरण:⇒ 16 मात्राएँ (ऽ अंत में)
रामचरितमानस की प्रसिद्ध चौपाइयाँ (उदाहरण सहित)
राम जन्म की चौपाई:
“जनमु सुभ उपजे सुखरासी।
सदा सुलभ भए संत दासी॥”
हनुमान जी की शक्ति:
“बलु बुद्धि बिद्या देहु मोहि।
हरहु कलेस बिकल भ्रम सोहि॥”
भक्ति का महत्व:
“भगत प्रिय भगवंत भगवाना।
जासु कृपा निर्मल करि जाना॥”
विशेषता | चौपाई | दोहा |
---|---|---|
मात्रा विन्यास | 16-16-16-16 | 13-11-13-11 |
अंत यति | सभी चरणों में गुरु | विषम चरण: गुरु-लघु |
प्रयोग | भक्ति काव्य | नीति/उपदेश |
चौपाई छंद का महत्व
- यह हिंदी भक्ति काव्य का प्रमुख छंद
- यह संगीतमयता और लय के लिए प्रसिद्ध
- यह तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस में व्यापक प्रयोग किया गया है
- यह सरलता से याद होने वाला छंद है
- यह प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाला महत्वपूर्ण टॉपिक
निष्कर्ष
- चौपाई छंद हिंदी काव्य की एक अनूठी विधा है जो अपनी मधुर लय और भक्ति भावना के कारण विशेष स्थान रखती है।
- तुलसीदास ने इस छंद का उपयोग कर रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना की जो आज भी लोकप्रिय है।