29 July 2025
उदायिन

उदायिन का इतिहास: पाटलिपुत्र के संस्थापक और मगध शासक | Udayin History in Hindi

उदायिन: मगध के हर्यक वंश का अंतिम शासक

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उदायिन

जन्म 5वीं शताब्दी ई.पू. (अनुमानित)
पिता अजातशत्रु
सत्ता प्राप्ति 461 ई.पू. में पिता की हत्या कर
उपनाम उदयभद्र
उत्तराधिकारी नागदशक
मृत्यु: 445 ई.पू.

उदायिन: परिचय

  • उदायिन (461-445 ई.पू.) हर्यक वंश का चौथा और अंतिम महत्वपूर्ण शासक था।
  • वह अजातशत्रु का पुत्र था जिसने मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित की।
  • उसके शासनकाल को हर्यक वंश के पतन और शिशुनाग वंश के उदय की पृष्ठभूमि के रूप में जाना जाता है।

शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ

  • पाटलिपुत्र की स्थापना
  • साम्राज्य विस्तार
  • धार्मिक नीति
  • प्रशासनिक व्यवस्था
  • मृत्यु और उत्तराधिकार

पाटलिपुत्र की स्थापना

  • गंगा और सोन नदियों के संगम पर नई राजधानी बसाई
  • नगर की सुरक्षा हेतु चारों ओर लकड़ी की प्राचीर
  • व्यापार और प्रशासन का महत्वपूर्ण केंद्र बना

साम्राज्य विस्तार

  • अवंति (उज्जैन) के साथ संघर्ष
  • वत्स और कोशल राज्यों के साथ संबंध
  • सीमा विवादों का सामना

धार्मिक नीति

  • बौद्ध धर्म को संरक्षण
  • जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता
  • विभिन्न धार्मिक स्थलों का निर्माण

प्रशासनिक व्यवस्था

  • केंद्रीय प्रशासन को सुदृढ़ बनाया
  • नगर प्रशासन पर विशेष ध्यान
  • व्यापार मार्गों का विकास

मृत्यु और उत्तराधिकार

  • मृत्यु: 445 ई.पू. (अनुराधा और मंडिक द्वारा हत्या)
  • उत्तराधिकारी: अजातशत्रु का पौत्र नागदशक
  • हर्यक वंश का अंत: 413 ई.पू. में शिशुनाग द्वारा

ऐतिहासिक स्रोत

बौद्ध ग्रंथ:

  • महावंश

जैन ग्रंथ:

  • परिशिष्टपर्वन

पुराण

  • पुराणों में उल्लेख

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य

  • शासनकाल: 461-445 ई.पू.
  • राजधानी: पाटलिपुत्र (प्रथम स्थायी राजधानी)
  • विशेष योगदान: मगध की नई राजधानी की स्थापना
  • ऐतिहासिक महत्व: हर्यक वंश के पतन की शुरुआत

उदायिन का ऐतिहासिक महत्व

  • पाटलिपुत्र को भारतीय इतिहास के प्रमुख नगर के रूप में स्थापित किया
  • मगध साम्राज्य के प्रशासनिक ढाँचे को मजबूत किया
  • हर्यक वंश के अंतिम सक्षम शासक
  • भविष्य के मौर्य साम्राज्य के लिए आधार तैयार किया

निष्कर्ष

  • उदायिन ने अपने छोटे से शासनकाल में मगध साम्राज्य को एक नई दिशा दी।
  • पाटलिपुत्र की स्थापना उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी जो आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की राजधानी बनी।
  • प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर उसके शासनकाल और पाटलिपुत्र की स्थापना पर प्रश्न पूछे जाते हैं।

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