उदायिन: मगध के हर्यक वंश का अंतिम शासक
जन्म | 5वीं शताब्दी ई.पू. (अनुमानित) |
---|---|
पिता | अजातशत्रु |
सत्ता प्राप्ति | 461 ई.पू. में पिता की हत्या कर |
उपनाम | उदयभद्र |
उत्तराधिकारी | नागदशक |
मृत्यु: | 445 ई.पू. |
उदायिन: परिचय
- उदायिन (461-445 ई.पू.) हर्यक वंश का चौथा और अंतिम महत्वपूर्ण शासक था।
- वह अजातशत्रु का पुत्र था जिसने मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित की।
- उसके शासनकाल को हर्यक वंश के पतन और शिशुनाग वंश के उदय की पृष्ठभूमि के रूप में जाना जाता है।
शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ
- पाटलिपुत्र की स्थापना
- साम्राज्य विस्तार
- धार्मिक नीति
- प्रशासनिक व्यवस्था
- मृत्यु और उत्तराधिकार
पाटलिपुत्र की स्थापना
- गंगा और सोन नदियों के संगम पर नई राजधानी बसाई
- नगर की सुरक्षा हेतु चारों ओर लकड़ी की प्राचीर
- व्यापार और प्रशासन का महत्वपूर्ण केंद्र बना
साम्राज्य विस्तार
- अवंति (उज्जैन) के साथ संघर्ष
- वत्स और कोशल राज्यों के साथ संबंध
- सीमा विवादों का सामना
धार्मिक नीति
- बौद्ध धर्म को संरक्षण
- जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता
- विभिन्न धार्मिक स्थलों का निर्माण
प्रशासनिक व्यवस्था
- केंद्रीय प्रशासन को सुदृढ़ बनाया
- नगर प्रशासन पर विशेष ध्यान
- व्यापार मार्गों का विकास
मृत्यु और उत्तराधिकार
- मृत्यु: 445 ई.पू. (अनुराधा और मंडिक द्वारा हत्या)
- उत्तराधिकारी: अजातशत्रु का पौत्र नागदशक
- हर्यक वंश का अंत: 413 ई.पू. में शिशुनाग द्वारा
ऐतिहासिक स्रोत
बौद्ध ग्रंथ:
- महावंश
जैन ग्रंथ:
- परिशिष्टपर्वन
पुराण
- पुराणों में उल्लेख
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
- शासनकाल: 461-445 ई.पू.
- राजधानी: पाटलिपुत्र (प्रथम स्थायी राजधानी)
- विशेष योगदान: मगध की नई राजधानी की स्थापना
- ऐतिहासिक महत्व: हर्यक वंश के पतन की शुरुआत
उदायिन का ऐतिहासिक महत्व
- पाटलिपुत्र को भारतीय इतिहास के प्रमुख नगर के रूप में स्थापित किया
- मगध साम्राज्य के प्रशासनिक ढाँचे को मजबूत किया
- हर्यक वंश के अंतिम सक्षम शासक
- भविष्य के मौर्य साम्राज्य के लिए आधार तैयार किया
निष्कर्ष
- उदायिन ने अपने छोटे से शासनकाल में मगध साम्राज्य को एक नई दिशा दी।
- पाटलिपुत्र की स्थापना उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी जो आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की राजधानी बनी।
- प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर उसके शासनकाल और पाटलिपुत्र की स्थापना पर प्रश्न पूछे जाते हैं।