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वर्ण
- हिन्दी भाषा की वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके और छोटे भाग न किया जा सके ध्वनि कहलाती है।
- भाषा का लघुत्तम रूप वर्ण कहलाता है
वर्णमाला
- वर्णों के सुव्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते है
वर्णमाला परिभाषा
कामता प्रसाद गुरु के अनुसार “वर्णमाला वर्णों के समुदाय(व्यवस्थित क्रमवद्ध) को कहते है”
वर्ण के भेद
- वर्ण के दो भेद होते है
- स्वर
- व्यंजन
1.स्वर (अच् )
- वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जा सके
- इसमें किसी अन्य वर्ण की जररूत नही पड़ती
परिभाषा “जिन ध्वनि के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि का सहारा न लेना पड़े उसे स्वर कहते है”
- स्वरों की संख्या 11 होती है ⇒ (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ )
- स्वर मात्राओ की संख्या 10 होती है
- अ स्वर की मात्रा नही होती है
स्वर के भेद
- स्वर के मुख्यतः तीन भेद होते है
- ह्रस्व स्वर / लघु स्वर
- दीर्घ स्वर / संयुक्त स्वर
- प्लुत स्वर
स्वर के भेद
- उत्पत्ति के आधार पर
- मात्रा/कालमान के आधार पर
- उच्चारण के आधार पर
- जीभ प्रयोग के आधार पर
- ओष्ठ प्रयोग के आधार पर
- मुख विवर के आधार पर
उत्पत्ति के आधार पर स्वर के भेद
- उत्पत्ति के आधार पर स्वर के दो भेद होते है
- मूल स्वर
- संधि स्वर
मूल स्वर
- इसमें केवल एक ही ध्वनि होती है
- इसकी संख्या चार है
जैसे :-
अ, इ, उ, ऋ
संधि स्वर
- इसमें दो ध्वनियाँ होती है
- इसकी संख्या सात है
जैसे :-
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
- संधि स्वर (दो ध्वनि ) (7)
संधि स्वर के भेद
- इसके दो भेद होते है
- दीर्घ स्वर
- संयुक्त स्वर /मिश्रित स्वर
दीर्घ स्वर
- इसकी संख्या तीन है
जैसे :-
आ, ई, ऊ
अ + अ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ
संयुक्त स्वर /मिश्रित स्वर
- इसकी संख्या चार है
जैसे :-
ए, ऐ, ओ, औ
अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ
कालमान /मात्रा /उच्चारण समय के आधार पर स्वर के भेद
- कालमान के आधार पर स्वर के तीन भेद होते है
- मात्रा की परिभाषा :- स्वरों के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते है
- ह्रस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
1. ह्रस्व स्वर
अन्य नाम: – मूल स्वर/ एक मात्रिक /लघु स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, ह्रस्व स्वर कहलाता है।
- इसके निर्माण में अन्य स्वर की आवश्कता नही होती है।
- इसकी संख्या चार होती है
जैसे :-
अ, इ, उ, ऋ
2. दीर्घ स्वर
अन्य नाम दीर्घ स्वर / संधि स्वर/ द्विमात्रिक स्वर/ गुरु
- जिन स्वरों के उच्चारण में अधिक समय लगता है, दीर्घ स्वर कहलाता है।
- इसके निर्माण में अन्य स्वर की आवश्कता होती है।
- इसकी संख्या सात है
जैसे :-
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
3. प्लुत स्वर
- अन्य नाम त्रिमात्रिक
- इसमें तीन मात्राए होती है
जैसे: – ॐ
उच्चारण स्थान के आधार पर स्वर के भेद
- उच्चारण स्थान के आधार पर स्वर के छ: भेद होते है
- स्वरों की कुल संख्या 11 है
- कंठ ⇒ (अ,आ)
- तालु ⇒ (इ, ई)
- मूर्धा ⇒ ऋ
- ओष्ठ ⇒ उ, ऊ)
- कंठ-तालु ⇒ (अ+इ = ए, ऐ)
- कंठ-ओष्ठ ⇒ (अ+उ = ओ,औ)
जीभ प्रयोग के आधार पर स्वर के भेद
- जीभ प्रयोग के आधार पर तीन भेद होते है
- अग्र स्वर
- मध्य स्वर
- पश्च स्वर
अग्र स्वर
- इ, ई, ए, ऐ
मध्य स्वर
- अ, आ
पश्च स्वर
- उ, ऊ, ओ, औ
ओष्ठ प्रयोग के आधार पर स्वर के भेद
- ओष्ठ प्रयोग के आधार पर दो भेद होते है
- वृत मुखी स्वर
- अर्द्ध वृत मुखी स्वर
वृत मुखी स्वर
- उ, ऊ, ओ, औ
अर्द्ध वृत मुखी स्वर
- आ, इ, ई, ए, ऐ
मुख विवर/ मुख आकृति के आधार पर स्वर के भेद
- विवृत स्वर (Open) ⇒ अ
- अर्द्ध विवृत स्वर (Half Open)
- अर्द्ध संवृत स्वर (Half Close)
- संवृत स्वर (Close) ⇒ इ, ई, उ, ऊ
स्वर की लिंग
- पुलिंग स्वर
- स्त्रीलिंग स्वर
पुलिंग स्वर
- कुल सात है
आ, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
स्त्रीलिंग स्वर
- कुल तीन है
इ, ई, ऋ
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