छन्द
- काव्य के व्याकरण को छन्द कहा जाता है
- सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद में मिलता है
- छन्द के प्रथम प्रणेता पिंगल ऋषि को माना जाता है
- पिंगल ऋषि ने अपनी रचना छन्द सूत्रम् उल्लेख किया
छन्द के अंग
- छन्द के सात अंग होते है
- चरण /पद
- वर्ण/मात्रा
- तुक
- लघु / गुरु
- यति (विराम)
- गति (लय)
- गण (संख्या क्रम)
उदाहरण
- जाल परे जल जात वही, तजि मीरन को मोह
- रहिमन मछरी नीर को, तऊन छड़त दोह
छन्द के सूत्र
- यमाताराजभानसलगा
- य मा ता रा ज भा न स ल गा
- Ι ζ ζ ζ Ι ζ Ι Ι Ι ζ
छन्द के भेद
- छन्द के चार भेद होते है
- मात्रिक छन्द (मात्रा)
- वर्णिक छन्द (वर्ण)
- उभय छन्द (वर्ण + मात्रा)
- मुक्तक छन्द(बिना वर्ण, बिना मात्रा)
मात्रिक छन्द
- इसमें मात्राओ की गणना की जाती है
मात्रिक छन्द के भेद
- मात्रिक छन्द के तीन भेद होते है
- सम मात्रिक छन्द
- अर्द्ध सम मात्रिक छन्द
- विषम मात्रिक छन्द
सम मात्रिक छन्द
- चौपाई (16)
- रोला (24)
- गीतिका (26)
- हरि गीतिका (28)
- रूपमाला (24)
- वीर (आल्हा )छन्द(31)
चौपाई (16)
- यह एक सममात्रिक छन्द है
- इसमें चार चरण होते है
- प्रत्येक चरण में 16 मत्राए होती है
- प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु मत्राए (ςς) पायी जाती है
- पहले चरण का तुक, दुसरे चरण से तथा तीसरे चरण का तुक, चौथे चरण से मिलता है
उदाहरण
- जय हनुमान ज्ञान गुन सागर(16 मत्राए)
- जय कपीस तिहुँ लोक उजागर (16 मत्राए)
अर्द्ध सम मात्रिक छन्द
- दोहा(13, 11, 13 11)
- सोरठा((11, 13, 11, 13)
- बरवै (12 ,7)
- उल्लाला(28) ⇒ 15, 13, 15, 13
दोहा
- यह अर्ध-सममात्रिक छन्द है
- इसमें चार चरण होते है
- इसमें कुल 24 मत्राए होती है
- पहले और तीसरे चरण में 13-13 मत्राए होती है
- दुसरे और चौथे चरण में 11-11 मत्राए होती है
सोरठा
- यह अर्ध-सममात्रिक छन्द है
- इसमें चार चरण होते है
- इसमें कुल 24 मत्राए होती है
- पहले और तीसरे चरण में 11-11 मत्राए होती है
- दुसरे और चौथे चरण में 13 -13 मत्राए होती है
बरवौ
- यह अर्ध-सममात्रिक छन्द है
- इसमें चार चरण होते है
- इसमें कुल 19 मत्राए होती है
- पहले और दूसरें चरण में 12-7 मत्राए होती है
- तीसरे और चौथे चरण में 12 -7 मत्राए होती है
उल्लाला
- यह अर्ध-सममात्रिक छन्द है
- इसमें चार चरण होते है
- इसमें कुल 28 मत्राए होती है
- पहले और दूसरें चरण में 15-13 मत्राए होती है
- तीसरे और चौथे चरण में 15 -13 मत्राए होती है
विषम मात्रिक
- कुण्डलिया (दोहा + रोला)
- छप्पय (दोहा + उल्लाला)
कुण्डलिया
- यह विषम-मात्रिक छन्द है
- यह दोहा + रोला से मिलकर बना है
- इसमें छ: चरण होते है
- प्रथम दो चरण दोहा और अन्तिम चार चरण रोला होता है
छप्पय
- यह विषम-मात्रिक छन्द है
- यह रोला + उल्लाला से मिलकर बना है
- इसमें छ: चरण होते है
- प्रथम चार चरण रोला और अन्तिम दो चरण उल्लाला होता है
वर्णिक छन्द
- इसमें वर्णों की गणना की जाती है
वर्णिक छन्दव के भेद
इसके तीन भेद होते है
- सम वर्णिक
- अर्द्ध-सम वर्णिक
- विषम वर्णिक
सम वर्णिक के भेद
- साधारण सम वर्णिक
- दण्डक सम वर्णिक
साधारण सम वर्णिक
- इसमें 1 से 26 तक के वर्ण होते है
दण्डक सम वर्णिक
- इसमें 26 से अधिक वर्ण होते है
- इन्द्रवज्रा (11)
- उपेन्द्रवज्रा (11)
- भुजंगी (11)
- स्वागता (11)
- वसन्त तिलका (14)
- मनहर कविन्त
- वंशस्थ
- भुजंग प्रपात
- द्रुत बिलम्बित (12)
- मालिनी (15) ⇒ (7 + 8)
- मद्राक्रान्ता (17) ⇒ (10 + 7)
- सवैया
- कविन्त (31) ⇒ (16 + 15)