रूपक अलंकार: परिभाषा, प्रकार और प्रभावशाली उदाहरण
रूपक अलंकार क्या है?
- रूपक अलंकार हिंदी काव्यशास्त्र का एक प्रमुख अर्थालंकार है जिसमें उपमेय और उपमान में अभेद (एकरूपता) दर्शाया जाता है।
- यह उपमा अलंकार का ही विकसित रूप माना जाता है।
रूपक अलंकार की परिभाषा
“जहाँ उपमेय को ही उपमान बना दिया जाए अर्थात दोनों में अभेद दर्शाया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है।”
रूपक अलंकार की विशेषताएँ:
- उपमेय और उपमान में पूर्ण समानता
- वाचक शब्द (जैसे, सा, सम) का अभाव
- अभेदार्थक प्रयोग
रूपक अलंकार के प्रकार
- यह अलंकार दो प्रकार का होता है
- संपूर्ण रूपक
- अंश रूपक
संपूर्ण रूपक
- जब वाक्य में पूर्ण अभेद दिखाया जाए।
उदाहरण:
“चरण कमल बंदौं हरि राई”
अंश रूपक
- जब वाक्य के किसी एक अंश में ही रूपक हो।
उदाहरण:
“मुख चन्द्रमा और नयन कमल हैं”
अन्य उदाहरण
- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
- बीती विभावरी जाग री
- मोर मुकुट मकराकृत
- नभ सितारों से जड़ा आसन
- हैं हाथी विशालकाय
- नीलकंठ कंठ उसका
- बाल घटा घने
- वाणी मधु मधुर
- गति बिजली तीव्र
- हृदय सागर विशाल
रूपक अलंकार का महत्व
- काव्य को प्रभावशाली बनाता है
- भावों में तीव्रता लाता है
- कल्पना को सशक्त बनाता है
- वर्णन को संक्षिप्त पर प्रभावी बनाता है
विशेषता | रूपक अलंकार | उपमा अलंकार |
---|---|---|
प्रकृति | अभेद दर्शाना | समानता दर्शाना |
वाचक शब्द | नहीं होता | सा, सम, सी आदि |
उदाहरण | चरण कमल हैं | मुख चंद्रमा-सा |
निष्कर्ष
- रूपक अलंकार हिंदी काव्य का एक प्रभावी अलंकार है जो अभेद दर्शाने के माध्यम से कविता को सशक्त और प्रभावपूर्ण बनाता है।
- यह कवियों द्वारा प्रभाव उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त होने वाला प्रमुख अलंकार है।