रोला छंद: परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
रोला छंद क्या है?
- रोला हिंदी काव्य का एक ऊर्जावान मात्रिक छंद है जिसका प्रयोग वीर रस, श्रृंगार रस और भक्ति भावना को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
- यह सम मात्रिक छंद की श्रेणी में आता है।
रोला छंद की परिभाषा
“रोला सम मात्रिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं और 11वीं एवं 13वीं मात्रा पर यति होती है। इसके विषम चरणों के अंत में गुरु-लघु (ऽ।) और सम चरणों के अंत में लघु-गुरु (।ऽ) होता है।”
रोला छंद की विशेषताएँ:
मात्रा विन्यास:⇒ प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ
यति स्थान:⇒ 11वीं और 13वीं मात्रा पर
अंत यति:⇒
विषम चरण: गुरु-लघु (ऽ।)
सम चरण: लघु-गुरु (।ऽ)
भाषा शैली:⇒ ओजपूर्ण और प्रवाहमय
प्रयोग:⇒ वीर रस, श्रृंगार रस, भक्ति काव्य
रोला छंद का मात्रा विन्यास
चरण: 24 मात्राएँ (11+13)
यति: 11वीं और 13वीं मात्रा पर
अंत:
विषम चरण: ऽ।
सम चरण: ।ऽ
रोला छंद के उदाहरण
वीर रस का उदाहरण:
“चढ़त चढ़त चढ़ गए भुजा बलवान।
देखत देखत रह गए सब हैरान॥”
भक्ति रस का उदाहरण:
“हरि गुन गावत सुख पावत मन की पीर बुझाई।
भवसागर तर गए जिन हरि पद नित ध्याई॥”
श्रृंगार रस का उदाहरण:
“अधर सुधारस पान करत मदमाते मन मोहन।
नयन नचावत सुख पावत मिले प्रिय सजन कोहन॥”
विशेषता | रोला | चौपाई |
---|---|---|
मात्राएँ | 24 प्रति चरण | 16 प्रति चरण |
यति | 11+13 मात्राओं पर | 8+8 मात्राओं पर |
अंत यति | विषम: ऽ।, सम: ।ऽ | सभी में गुरु |
प्रयोग | वीर/श्रृंगार रस | भक्ति काव्य |
रोला छंद का महत्व
- यह हिंदी काव्य का प्रमुख छंद
- यह वीर रस की अभिव्यक्ति के लिए आदर्श है
- यह संगीतमयता और लयबद्धता प्रदान करता है
- यह प्रभावी अभिव्यक्ति का माध्यम है
- यह प्रतियोगी परीक्षाओं में महत्वपूर्ण है
निष्कर्ष
- रोला छंद हिंदी काव्य की एक अनूठी विधा है जो अपनी ओजस्वी लय और प्रभावी अभिव्यक्ति के कारण विशेष स्थान रखती है।
- यह छंद वीर रस और श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।