हरिगीतिका छंद: परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
हरिगीतिका छंद क्या है?
- हरिगीतिका हिंदी काव्य सम मात्रिक छंद है जिसका प्रयोग मुख्यतः भक्ति काव्य में किया जाता है।
- यह गीतिका छंद का भक्ति रूप माना जाता है।
हरिगीतिका छंद की परिभाषा
“हरिगीतिका सम मात्रिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं और 16वीं एवं 12वीं मात्रा पर यति होती है। इसके सभी चरणों के अंत में गुरु-लघु (ऽ।)** होता है।”
हरिगीतिका छंद की विशेषताएँ:
मात्रा विन्यास:⇒ 28 मात्राएँ प्रति चरण (16+12)
यति स्थान:⇒ 16वीं और 12वीं मात्रा पर
अंत यति:⇒ गुरु-लघु (ऽ।)
भाषा शैली:⇒ भक्तिमय और संगीतमय
प्रयोग:⇒ भक्ति काव्य, कीर्तन
चरण: | 28 मात्राएँ (16+12) |
यति: | 16वीं और 12वीं मात्रा पर |
अंत: | प्रत्येक चरण के अंत में ऽ। |
हरिगीतिका छंद के उदाहरण
तुलसीदास जी का उदाहरण:
“राम नाम मनिदीप धरु जीवन के पंथ माहिं।
तुलसी भरोसो एक हिये हरि अवलंबन चाहिं॥”
सूरदास जी का उदाहरण:
“मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सब आयो॥”
भक्ति भावना का उदाहरण:
“हरि गुन गावत मन लीन होय।
भवसागर तर जावत कोय॥”
विशेषता | हरिगीतिका छंद | गीतिका छंद |
---|---|---|
मात्राएँ | 28 प्रति चरण | 26 प्रति चरण |
यति | 16+12 मात्राओं पर | 14+12 मात्राओं पर |
अंत यति | गुरु-लघु (ऽ।) | दो गुरु (ऽऽ) |
प्रयोग | भक्ति काव्य | प्रेम काव्य |
हरिगीतिका छंद का महत्व
- यह भक्ति काव्य का प्रमुख छंद है
- यह संगीतमयता और भक्ति भावना के लिए प्रसिद्ध है
- यह कीर्तन और भजनों में व्यापक प्रयोग किया जाता है
- यह तुलसीदास और सूरदास जैसे संत कवियों द्वारा प्रयुक्त किया गया है
- यह हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है
निष्कर्ष
- हरिगीतिका छंद हिंदी भक्ति काव्य की एक अनूठी विधा है जो अपनी मधुर लय और भक्ति भावना के कारण विशेष स्थान रखती है।
- यह छंद भक्ति रस की अभिव्यक्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।