बरवै छंद: परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण
बरवै छंद क्या है?
- बरवै छंद हिंदी काव्य का एक प्रसिद्ध मात्रिक छंद है, जिसका प्रयोग अक्सर दोहों के साथ किया जाता है। यह छंद भक्ति, श्रृंगार और नीति संबंधी विषयों को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
बरवै छंद की परिभाषा
बरवै छंद में कुल 12 मात्राएँ होती हैं, जो दो चरणों (पंक्तियों) में विभाजित होती हैं। इसके प्रत्येक चरण में 6-6 मात्राएँ होती हैं और अंत में तुक (समान अंत) का प्रयोग किया जाता है।
बरवै छंद के लक्षण
मात्रा संरचना:⇒ 6-6 (कुल 12 मात्राएँ)।
तुकांत:⇒ दोनों चरणों में समान अंत (तुक) होता है।
भावपूर्ण:⇒ इसमें नीति, भक्ति और जीवन के अनुभवों को संक्षिप्त और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जाता है।
लयबद्धता:⇒ यह छंद गेय होता है और इसे गाकर सुनाया जा सकता है।
बरवै छंद के उदाहरण
उदाहरण (श्रृंगार):
“नैनन की कोर सुधा रस बरसै,
मुख मधुर मधुर मृदु बोल बतरसै।”
उदाहरण (नीति):
“धीरज धरम मित्र अरु नारी,
आपतकाल परखिए चारी।”
उदाहरण (भक्ति रस):
“जो नर दुख में दुख नहिं मानै,
सुख सनेह अरु भय नहिं जानै।”
विशेषताएं | बरवै | दोहा |
---|---|---|
मात्राएँ | बरवै में केवल 12 मात्राएँ (6-6) होती हैं | दोहे में 24 मात्राएँ (13-11) होती हैं |
तुक | बरवै में दोनों चरणों में तुक होता है | दोहे में पहले और तीसरे चरण में तुक नहीं होता |
निष्कर्ष
- बरवै छंद हिंदी काव्य का एक संक्षिप्त परंतु प्रभावशाली छंद है, जिसमें गहरे भावों को कम शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है।
- यह छंद कविताओं, दोहों और भजनों में खूब प्रयोग किया जाता है।
- अगर आप हिंदी कविता लिखने में रुचि रखते हैं, तो बरवै छंद का प्रयोग अवश्य करें