रूपमाला छंद: परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण
रूपमाला छंद क्या है?
- रूपमाला छंद हिंदी काव्य का एक मधुर छंद है जिसका प्रयोग मुख्य रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है।
- यह छंद प्रेम और सौंदर्य वर्णन में विशेष रूप से प्रभावी होता है।
रूपमाला छंद की परिभाषा
रूपमाला छंद में कुल 26 मात्राएँ होती हैं जो चार चरणों (पंक्तियों) में विभाजित होती हैं। इसके प्रत्येक चरण में 6, 7, 6, 7 मात्राओं का क्रम होता है। यानी पहले और तीसरे चरण में 6 मात्राएँ जबकि दूसरे और चौथे चरण में 7 मात्राएँ होती हैं।
रूपमाला छंद के मुख्य लक्षण
मात्रा संरचना:⇒ 6-7-6-7 (कुल 26 मात्राएँ)
तुकांत:⇒ दूसरे और चौथे चरण में तुक (समान अंत) होता है
भावपूर्ण:⇒ मुख्य रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति
लयबद्धता:⇒ गेयता के कारण गीतों में प्रयुक्त
भाषा:⇒ कोमल और मधुर शब्दावली
रूपमाला छंद के उदाहरण
उदाहरण (सौंदर्य वर्णन):
“अधर रसाल, नयन विसाल,
अंग अंग में छवि निराली।
केश पतंग, मुख चंद्र सम,
मन हर लेत मुरली वाली॥”
उदाहरण (प्रेम भाव):
“मधुर मुस्कान, नैन विषान,
बसत हृदय में दिन रैन।
तन मन धन, सब अर्पित है,
प्राण प्यारे तेरे चरण॥”
रूपमाला छंद और अन्य छंदों में अंतर
हरिगीतिका:⇒ हरिगीतिका में 28 मात्राएँ (6-7-6-7) होती हैं जबकि रूपमाला में 26 मात्राएँ
चौपाई:⇒ चौपाई में सभी चरण समान लंबाई के होते हैं जबकि रूपमाला में भिन्न
सवैया:⇒ सवैया में मात्रा गणना अलग होती है और यह वीर रस के लिए अधिक उपयुक्त है
रूपमाला छंद का महत्व
- श्रृंगार रस की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति
- मधुर भावों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम
- हिंदी काव्य परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा
- गेयता के कारण भजन और गीतों में उपयोगी
निष्कर्ष
- रूपमाला छंद हिंदी काव्य की एक सुंदर विधा है जो प्रेम और सौंदर्य के भावों को मधुर ढंग से व्यक्त करती है।
- इस छंद में लय, ताल और भाव का अनूठा संगम होता है।
- यदि आप कविता लिखने में रुचि रखते हैं तो रूपमाला छंद में प्रयास अवश्य करें।